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देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कुछ विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। देवनागरी बायें से दायें लिखी जाती है, अौर इसकी (साथ ही ज्यादातर उत्तर-भारतीय लिपियों की भी) पहचान एक क्षैतिज रेखा से है। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी,कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, डोगरी, नेपाली, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली उपभाषाएँ), तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी,बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं।मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया की एक ट्राम पर देवनागरी लिपि
अनुक्रम
[छुपाएँ]- 1 परिचय
- 2 'देवनागरी' शब्द की व्युत्पत्ति
- 3 इतिहास
- 4 भाषाविज्ञान की दृष्टि से देवनागरी
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5 देवनागरी वर्णमाला
- 6 देवनागरी लिपि के गुण
- 7 देवनागरी पर महापुरुषों के विचार
- 8 भारत के लिये देवनागरी का महत्व
- 9 विश्वलिपि के रूप में देवनागरी
- 10 लिपि-विहीन भाषाओं के लिये देवनागरी
- 11 देवनागरी की वैज्ञानिकता
- 12 देवनागरी के सम्पादित्र व अन्य सॉफ्टवेयर
- 13 देवनागरी से अन्य लिपियों में रूपान्तरण
- 14 देवनागरी यूनिकोड
- 15 कम्प्यूटर कुंजीपटल पर देवनागरी
- 16 सन्दर्भ
- 17 इन्हें भी देखें
- 18 बाहरी कड़ियाँ
परिचय[संपादित करें]
अधिकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है (कुछ वर्णों के ऊपर रेखा नहीं होती है) इसे शिरोरे़खा कहते हैं। इसका विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। इससे वैज्ञानिक और व्यापक लिपि शायद केवल आइपीए लिपि है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्तन बहुत आसान हो गया है।वाराणसी में देवनागरी लिपि में लिखे विज्ञापन
उत्तरी ब्राह्मी
भारतीय भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग 'हू-ब-हू' उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में सम्भव नहीं है, जब तक कि उनका विशेष मानकीकरण न किया जाये, जैसे आइट्रांस या आइएएसटी।मुम्बई के सार्वजनिक यातायात के टिकट पर देवनागरी
इसमें कुल ५२ अक्षर हैं, जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) मे प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा।
भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं पर उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं, क्योंकि वे सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं (उर्दू को छोडकर)। इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है।
भारतीय अंकों को उनकी वैज्ञानिकता के कारण विश्व ने सहर्ष स्वीकार कर लिया है।
'देवनागरी' शब्द की व्युत्पत्ति[संपादित करें]
देवनागरी या नागरी नाम का प्रयोग "क्यों" प्रारंभ हुआ और इसका व्युत्पत्तिपरक प्रवृत्तिनिमित्त क्या था- यह अब तक पूर्णत: निश्चित नहीं है।
(क) 'नागर' अपभ्रंश या गुजराती "नागर" ब्राह्मणों से उसका संबंध बताया गया है। पर दृढ़ प्रमाण के अभाव में यह मत संदिग्ध है।
(ख) दक्षिण में इसका प्राचीन नाम "नंदिनागरी" था। हो सकता है "नंदिनागर" कोई स्थानसूचक हो और इस लिपि का उससे कुछ संबंध रहा हो।
(ग) यह भी हो सकता है कि "नागर" जन इसमें लिखा करते थे, अत: "नागरी" अभिधान पड़ा और जब संस्कृत के ग्रंथ भी इसमें लिखे जाने लगे तब "देवनागरी" भी कहा गया।
(घ) सांकेतिक चिह्नों या देवताओं की उपासना में प्रयुक्त त्रिकोण, चक्र आदि संकेतचिह्नों को "देवनागर" कहते थे। कालांतर में नाम के प्रथमाक्षरों का उनसे बोध होने लगा और जिस लिपि में उनको स्थान मिला- वह "देवनागरी" या नागरी कही गई। इन सब पक्षों के मूल में कल्पना का प्राधान्य है, निश्चयात्मक प्रमाण अनुपलब्ध हैंQuelle: Wikipedia (Creative Commons, BY-SA)
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